Do you change your life ? Do you want to bring happiness to your doorstep ? Start positive thinking and see the result your self
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The power of thinking in our life
If some one wants to be some extra in his life, what should they do ? The answer is very simple nothing but start to think about his goal.. Yes, the first steps of success starts from thought.
we all know the story of scientist Newton. when he saw a falling apple, he thought about the force of nature and the world got the gift of gravity principle. Only one thought is enough for turning point of life !!
Many and many examples we may find from the history that merely one thought and open new direction of life as well as science. It may happen with you too if you start positive thinking so. Starting of best thinking proves miracle !!
Our mind draws our future map it self !!
Change your thought, change your life !! Our thought is pre-stage of our success life.
Sometime we trap in constant thought of defeat, sorrow, anxiety, jealous, dissatisfaction, minor glands. One by one thought has come and attack to us. Confliction of thoughts bother us a lot. In this time what should we do ?
First we should divert our thought to other direction. And second step is to think positive. we have to trust ourselves that what he think is not true and it is only mind game only.
My friend Rohit always thought that one day he might have accident. And really had an accident with him. In this way negative thinking effect negative.
Meaning of positive thinking
Always think best for future is called positive thinking. यहा पर केवल यही सोचना है की आने वाला कल हमारे लिए अच्छा ही रहेगा. कोई घटना घटने से पूर्व उनसे विपरीत सोचना एक प्रकार से negative भाव create करना है. इनका मतलब यह हुवा की mind को एक अच्छे ढाचे में ही रखना.
क्योकि जबभी मन में बुरे और negative ख्याल आने लगते है तब उनका पूरा structure(जो संस्कार या छाप मनमे अंकित है वह) बदलने लगता है. मतलब की वह थोडा सिकुड़ता जाता है. आधुनिक शोधको कहते है की जो नियमित रूप से negative ही सोचता है.
उनका mind सिकुड़ा जाता है. मतलब की उनके जो व्याप है वह एक हद तक ही रहता है. वह लम्बा सोच नही शकता. इसलिए मुझसे यह नही होगा कहकर दिमाग को बंध कर लेता है. इनके आधार पर उनका वर्तन भी होने लगता है.
आमतोर पर यही सही है की आदमी जो कुछ दिन भर में सोचता है उन्ही के आधार पर उसका वर्तन हो जाता है. “जैसी सोच वैसा व्यवहार ” यही सूत्र आधारभुत है. क्योकि हाथ, पैर इत्यादि को कार्य के संकेत वही तो देता है.
why positive thinking works ?
हमारी सोचही हमारा भावी निश्चित करती है. कभी कभी ऐसा होता है की हम मन ही मन चिंता तनाव के बारेमे सोचने लगते है और सचमुच अपने आप को तनाव से घिरे हुवे महसूस करने लगते है. हमारी सोच हमारे जीवन की दिशा तय करती है.
we should change our perspective -देखने का नजरिया
अगर कोई निरंतर चिंता का ही चिन्तन करता रहे निराशाजनक बाते सोचता रहे तो उनके जीवनमें यकीनन निराशा ही प्राप्त होगी. वह जीवन में कुछ नहीं कर पायेगा. बस मन ही मन tension में और ट्रेश में जीवन व्यतीत करता रहेगा.
स्थिति कितनी भी अच्छी क्यों न हो. चिंता और निराशा का आदि उसमेभी कोई न कोई बात ढूढ ही लेता है. अगर हम ऐसा सोचे ही नहीं की हम आनंद में है तो हमे आनंद प्राप्त होगा ही नहीं. आपने देखा होगा की कई लोग अच्छे समयमें भी बहुत दुखी रहते है.
अपनी एक सोच के आधार पर वह अपना सारा सुख गवा देता है. उसका result क्या मिलता है. उनके जीवन में कभी ख़ुशी आती ही नहीं.
जीवन युही सदा रोते रोते बीत जाता है. जीवन का बोज उठाते उठाते वह थक जाते है. अंतमे मर जाते है लेकिन अपनी सोच को नही बदल पाते. इसलिए मन से सदा प्रसन्न रहना चाहिए.
जो कुछ हमारे पास है उन पर विचार करना चाहिए और मन ही मन प्रसन्नता का अनुभव करना चाहिए. क्योकि अगर आप हर स्थिति में दुःख की चदर अपने पर ओढ़ ले तो दुनिया का सारा खजाना आपको मिलने पर भी आप ख़ुश नहीं हो पायेगे. सोच के इन्ही रहस्य को योग के सिध्धांत पर रख के दिव्य सोच के बारेमे सोचते है !!!!
इसलिए भगवद गीता में भी भगवान कहते है की
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः”
मनुष्य का बंधन और मुक्ति का मार्ग उनका मन ही तय करता है. मन ही उनका गुरु है, मित्र है और शत्रुभी वही है वह चाहे तो उपर दिव्य लोकमे ले जाता है और अगर बुरे विचारो में फंस गया तो पतन का कारन भी यही मन है. इसलिए उन्हे सारथिभी कहा गया है. यही मन हमारे विचारसे बना है. अतः यु कहो की मन और विचार एक दुसरे से जुड़े हुवे है.
इसलिए thinking is very important in our life.
सुख और दुःख का अहेसास mind से होता है
हमारा शरीर एक instrument है. हमारे हाथ, पैर, आखे ये सब हमारे ख्याल के मुताबिक काम करते है. अगर वह अपने आप काम करने लगे तो ये एक रोग कहलायेगा !!! हाथ काम करता है लेकिन हमारे mind के आधार पर. हमारे पैर काम करते है लेकिन mind के आधार पर.
मतलब की मन में जो भी विचार आते है उनके आधार पर हम काम करते है. हमारी इच्छा के अनुशार हमार्री सारी इन्द्रिय काम करती है. अगर दिमागमे घुमने जाने का ख्याल आता है तो आदमी के पैर उस तरफ चल पड़ते है.
हा यहाँ बुध्धि का नियंत्रण होता है मतलब की बुध्धि अगर रोकती है तो वह कार्य नहीं होता. फिरभी अगर मन की शक्ति ज्यादा हो, इच्छा ज्यादा पर फेलाती हो तो बुध्धि भी नही रोक शकती.
कुल मिलाके ये बात तो सच ही है की मन हो या बुध्धि सभी निर्णय और अनुभव यहाँ से ही होते है. हमारे शरीर में पीड़ा होती है तो उनका अनुभव हमारे मन में होता है, दिमाग में होता है
अगर किसीको बेभान किया जाता है और उनके शरीर के कोई भाग को अगर काट दिया जाये तो भी उनकी पीड़ा या ज्ञान उसे नही होता है. अगर कोई गहरी नीदं में होता है और जब तक वह जागृत नही होता तब तक उन्हें भी ये सारी बाते पता नही चलती.
All is depend on our mind
इस तरह से ये बात समजी जाती है की मन ही सब कुछ है हमारा ये शरीर तो केवल साधन है. जो भी हम सोचते है वैसा ही अनुभव हमें होता है. अगर कोई बार बार छोटी छोटी बात को लेकर चिंता करता रहता है तो उनका स्वभाव चिंतालू हो जायेगा और इसी कारण वह निरंतर दुखी रहेगा. बार बार उसे ऐसा ही लगेगा की मेरे साथ कुछ बुरा होने वाला है.
कोई तकलीफ या कोई परेशानी आये उनके पहले ही वह यह सोचने लगे की में बहुत परेशान होने वाला हु तो सच में धीरे धीरे उसे परेशानी महसूस होने लगेगी और इतना ही नहीं यही परेशानी असलमे वास्तविक रुपमे प्रगट होती जाएगी !
क्योकि यह पूरा संसार जो कुछ हम देख रहे है वह सब संकल्प का ही परिणाम है. यह पूरा शहर मन में उत्पन्न हुए विचार की ही पेदाश है. क्योकि हर इमारते, हर रास्ते, प्रत्येक structure इस तरह से बनाना है ऐसा किसी न किसे ने सोचा होगा.
उनके मुताबिक ही यह सार मंडल निर्माण हुवा है. आधुनिक वैज्ञानिक भी यह बात की पुष्टि करते है की यह सारा जगत मन से बहार आया है मतलब की एक विचार की ही पेदाश है. मतलब की मनोमयी है. इसीलिए तो यह सारा मंडल मन में ही अनुभव होता है.
Effect of negative thinking on body, mind and our life
इसलिए जब हम बुरा सोचते है. विपरीत चिन्तन करते है तो हमारा पूरा शरीर और कार्य दोनों उससे प्रभावित होते है. अगर कोई भले बहार से कुछ न करे लेकिन मन ही मन विपरीत सोचता रहे.
किसी के प्रति जलता रहे, sex के बारेमे ही सोचता रहे, निदा करता रहे, हिंसा, भय, चिंता, तनाव आदि के बारे में सोचता रहे तो निश्चित दोर पे उनका पूरा अस्तित्व धीरे धीरे उसी सोच के आधार पर ढलता जायेगा.
इसमें ही एक रहस्य छिपा हुवा है हमारा स्वरूप तो दिव्य है लेकिन प्रथम बार यही दिव्य स्वरूप मन के साथ जुडके मन में जो भी सोच प्रगट होती है उन्ही के साथ पूरी तरह घुल मिल जाता है और फिर उसे अपना स्वतंत्र अस्तित्व का अहेसास होता ही नहीं.
Our body creates many cells daily..
हमारे शरीर में प्रत्येक दिन लाखो करोडो की संख्यामे नये कोष जन्म लेते है. जब मन में ऐसी विपरीत सोच हो तो जो भी नये कोष उत्पन्न होगे वह सारे विकार ग्रस्त, रोग ग्रस्त और कमजोर होगे.
उनका कारण यह है की जब हम बुरा सोचते है तब हमारे शरीर को और दिमाग को ईश्वरीय चेतना की विश्व शक्ति नहीं मिलती. जिस तरह पानी के pipe में पानी का बहाव कम होते ही उसमे कचरे की रुकावट आने लगती है उसी तरह से यहा भी नाडी या धीरे धीरे कमजोर होती जाएगी.
नये cell में भी कई तरह की गरबड उत्पन्न होती है यही गरबड कई तरह के रोग create करती है. आदमी शक्ति हिन् होता जाता है. उसमे वीर्य की कमी होने लगती है. ज्यादा सेक्स के बारेमे सोचने से आदमी पशु जैसा हो जाता है.
दिव्यता नष्ट हो जाती है. उनका सम्पर्क विश्व चेतना के साथ तूट जाता है. ये सब मिलके बीमारी, दुःख, अशांति, भय, तनाव पैदा करता है. उनका पूरा जीवन दुखी दुखी हो जाता है. जीवन में जीने की कोई उम्मीद नही रहती. निरुत्साह उनका स्वभाव बन जाता है.
इतना ही नहीं ऐसे लोग पूरा माहोल बिगाड़ देते है. समाजमे और विश्वे में ऐसे बुरी सोच वाले लोग ज्यादा होते है तो पुरे विश्वमे धीरे धीरे अशांति फेल जाती है. इस तरह हमारे भीतर जो भी सोच create होती है उन्हें गलती से भी सामान्य और कमजोर मत गिने यही सोच आदमी को मानव से दानव बना देती है और यही सोच उसे भगवान भी बना देती है.
छोटीसी कुछ पक्तिया ?
चलता रहे तू चलता रहे,
अपनी राहो पे चलता रहे, हिमंत हाम भरोसा मनमे रखके ,
कंटको से मत गभरा,
जरा भी न पीछे हटके,
चलता रहे तू चलता रहे, हिमंत हाम भरोसा मनमे रखके
कभी उचे कभी निचे,
जीवन के ये दो पहलु है,
चलता रहे तू चलता रहे, हिमंत हाम भरोसा मनमे रखके.
हमें किस तरह से दिव्य सोचना चाहिए ?
हमने यह बात तो समज ली की हम जिस तरह से सोचते है वैसा ही हमारा शरीर काम करता है. हमारा पूरा जीवन उसी तरह से कार्य करता है. आने वाले सारे सयोगों उसी विचार के आधार पर होते है. जो निरन्त बुरा सोचता है उनका निश्चित दोर पे बुरा होगा. यहाँ हमारा प्रश्न यह है की हमे दिव्य चिंतन किस तरह करना चाहिए.
सुबह हर हमेशा उठकर तुरंत विश्व का भला हो ऐसा सोचना चाहिए. फिर तुरंत ही यह सोचना चाहिए की आज का दिन मेरे लिए कुछ न कुछ बहेतर होगा.
कोई भी कार्य के शरुआत में ही “में नही कर पाउँगा !! ” इसमें हमे कुछ मिलने वाला नहीं है !! ” देखना हमें bed news ही मिलेगे. ऐसा नही सोचना.
एक आशा की किरन को भी हमे नही छोड़ना. अगर ग्लास आधा खाली है तो हमें यह नहीं सोचना की ग्लास आधा खाली है लेकिन यह सोचना की ग्लास आधा तो भरा हुवा है अब मुझे आधा ही भरना है.
Our friends proves more motivator to us so we should keep away ourselves from negative thinker. Because they always tries to come down our enthusiasm. Contrast of it positive thinker friend always inspire us that we can do !!
Our dress, our body and our work should keep up to date. Because this type of little matters impact our thinking style.
जो अपने आप में ठीक नहीं है, अनियमित है उनकी सोच भी ऐसी ही होगी.
Deep knowledge for yogi..? (yoga studio)
हमेश की तरह अब हम yoga diary के हिसाब से कहेगे
हम जो कहने जा रहे वह यह है की जब कोई विपरीत चिन्तन होता है तब हम हमारी दिव्य चेतना से अलग होते है. मतलब की एक परस्पर खिचाव है. मान ली जिए दो तरफ से एक ही वस्तु को बांध दिया जाये. अगर एक और खिचाव ज्यादा रहेगा तो वह चीज उस तरफ सरक जाएगी.
इसी तरह हमारा mind बिचमे आता है एक तरफ यह सारे विषयों है और दूसरी तरफ divine power (divine self). अगर हम negative thinking करेगे तो तुरंत ही उनके अनुरूप वृतीया उत्पन्न होगी. परिणाम स्वरूप हमे दुःख, असंतोष, चिंता, हतासा प्राप्त होगी.
हम भीतर से कमजोर होते जायेगे और फिर धीरे धीरे मानसिक रोग के सिकारभी होते जायेगे. जो सोच हमें हमारी दिव्य चेतना की और ले जाये उसे ही दिव्य चिंतन कहते है और उसी सोच हमें धीरे धीरे भीतर से जागृत कर पायेगी.
योग शास्त्रमे इस बात को लेकर क्लिष्ट और अक्लिष्ट वृति का जिक्र किया गया है. divine thinking के लिए हमें हमारे भीतर से जोड़ने वाली वृति मतलब की सोच ही कारगत होती है. इन्ही को आधुनिक मनोवैज्ञानिक positive thinking बोलते है.
जब विपरीत सोच से हम ग्रस्त हो जाते है तब हमारा हम मन वह दूषित घेरे में फस जाता है. यह घेरा एक घने बादल से कम नहीं है. वह हमारी चेतना की अनुभूति को नष्ट कर देता है. और हम दुखी होने लगते है. यह घेरा इस जन्म तक नही लेकिन आगे के जन्म में भी हमारे साथ रहता है ऐसा योग विद्या कहती है.
conclusion
At last conclusion that you have to think always positive. when your mind doesn’t free from the negative thinking, that Yoga studio can help you in any critical situation.
आखिरमे एक ही बात फिर से यहाँ जान लेनी है की हमे किसीभी तरह से बुरी सोच का शिकार नहीं बनना है. जबभी ऐसा समय आये तो हमारा यह blog पढने लगना. इनके दिव्य विचार आपके अचेतन मन को जरुर जाग्रत करेगी और दिव्यता की और हम चल पायेगे. निरंतर आनद को पाके सुखी जीवन जी पायेगे.
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Bonjour, ton blog est très réussi ! Je te dis bravo ! C’est du beau boulot !:) Korrie Chet Ackerley
Hello, your blog is very successful! I say bravo! Great job! 🙂 Korrie Chet Ackerley