Spirituality meaning in hindi-धर्म और अध्यात्म में क्या अंतर है ?

मित्रो आजका हमारा subject है religious vs spirituality में क्या अंतर है. What is the difference between religious and spiritual. उनको समजने से पहले हम उनका अर्थ जान लेते है. Religious मतलब धार्मिक.

धार्मिक यानी कोई धर्म से जुड़ा हुवा. कोई एक निति नियम और विधि का संप्रदाय. ये एक वर्ग है. एक समूह है, जिसमे उनको मानने वाले कोई न कोई नियम से जुड़े हुवे होते है. धर्मकी बागडोर श्रध्धा है, आस्था है.

प्रत्येक धर्म इश्वर पर आस्था से जुडा हुवा है. धर्म का ध्येय इश्वर है. फिर वह मूर्ति हो, या केवल एक निराकार स्वरूप या कोई चिह्न. भूतकाल में हो गये कोई भी अवतार. अवतार का मतलब वह असामान्य मानव के रुपमे वह दिव्य शक्ति का प्रगटीकरण जो इश्वर का होने का अहेसास भी कराए और एक राह भी दिखाए.

धर्म पर हमारी आस्था होती है. अतूट विश्वास होता है. सभी धर्म के रक्षक होते है, मुख्या होते है उसे धर्म गुरु कहते है. या उसे और कोई नाम दे दो, लेकिन वह धर्म के बारेमे सभी को शिखाते है. धर्म का अलग अलग पहेरवेश भी होता है. कोई निशानी भी होती है.

मतलब की दुसरे धर्म से उसे अलग करने के लिए कोई अलग तरीका अपनाया जाता है. धर्म में धर्मस्थान होता है. वह मन्दिर के रूप में हो. मस्जिद के रुपमे हो या फिर चर्च के रुपमे हो, गुरुद्वारा हो, या कोई भी अन्य रुपमे हो. लेकीन एक अलग स्थान धर्म का होता है जो इश्वर का स्थान माना जाता है. उन पर भी लोगो की आस्था भारी होती है.

पशु और मानव में यही एक अंतर है जिसे वह अलग पड़ता है. पशु को खान, पान और प्रजनन का ही पता होता है. लेकीन मनुष्य को अक्सर एक परेशानी सताती है की वह कौन है ? उसे खो जाने का, छुट जाने का और कोई मुसीबत आने का डर सदेव रहता है !.

उनके पास बुध्धि है. इसलिए वह बार बार सोचता रहता है. उसे समाधान चाहिए. ! जो कुछ भी वह देखता है वह क्या है ? किसने बनाया है. ? उनके बारे में निरंतर सोच धर्म को जन्म देता है. ये सोच आज की नही है हजारो वर्षो से यही सोच चल रही है और यही सोच के अलग अलग नतीजे ही धर्म है.

हमने इतिहास को देखा है की हर समय में कोई न कोई ऐसा आता है जिसे शंशय उत्पन्न होता है. उन्हें लगता है ये सब क्यों है ? कौन कर रहा है ? तब वह सामान्य जीवन को त्याग कर उनकी शोध में निकल पड़ता है ! यही से अध्यात्म की यात्रा शुरू होती है.

उनके लगातार प्रयास के नतीजे पर उन्हें परम सत्य की उपलब्धि होती है. यही उपलब्धि को वह दुसरो में बाटता है. उनकी कही गई बाते कभी कभी नया धर्म का रूप भी ले लेती है. इस तरह से अलग अलग धर्म बनते है हलाकि जो वैदिक धर्म है वह सबसे पुरातन है और उनके रचयिता कोई एक व्यक्ति नही है बल्कि अनेक मनीषीओ की तपश्चर्या है !

इस तरह से एक सोच जो इश्वर की है उसे केवल मानना और जीवन व्यतीत करना धर्म है. लेकिन वही इश्वर जो सर्व व्यापि है. वही परमात्मा जो प्रत्येक में विद्यमान है, उन्हें शोधने का प्रयास अध्यात्म है. उनकी अनुभूति कैसे हो ऐसा सोचना अध्यात्म है.

जो प्रश्न हजारो वर्षो से उठ खड़े होते है. उनके उत्तर तैयार रखे गये है. उनको केवल मानना धर्म है और उनके अनुशार अनुभूति कैसे हो ये शोधना अध्यात्म है ! अध्यात्म एक विकाश है. जो चेतना केवल शरीर और इन्द्रिय में ही रत रहती है. उनसे आगे बाहर की चीज वस्तुओ को ही इकठ्ठा करने में एकरूप होती है उन्हें स्वयम को जानने में लगाना अध्यात्म है.

एक बार वह जागरूकता develop हो गई. फिर उसे ही अपने और अन्य के अस्तित्व को बहेतर बनाने में लगाना भी अध्यात्म का हिस्सा है. हमने ये सब इतिहास में देखा है की अनेक महापुरुषो के जीवन में यही घटना क्रम रहा है. स्वयम को जानना, दिव्य चेतना को जानना और उसे बाहरी दिशामे लगाना. लोक कल्याण में उसे समर्पित कर देना.

बहुजन समाज अनिश्चिता का भय और आकाक्षाओ की पूर्ति करने के लिए इश्वर या भगवान को मानते है. वह दुखो से मुक्त होना चाहते है. कुछ न कुछ पाना चाहते है. उसे मालूम है की कोई ऐसी शक्ति है जो ये सब चलाती है. उसे मानने से मुजे वह सब मिल शकता है.

अगर मेरे पर कोई आफत आने वाली हो वह भी रुक जाएगी ! और होता भी है जब कोई इश्वर को सच्चे भाव से पुकारे तब वह उन चेतना के साथ एकाकार होता है, उनके काम होते है. या यु कहो की जो इश्वरिय शक्ति सर्वत्र है, वही उनकी श्रधा के जरिये बहती है. उनके कार्य हो जाते है.

धर्म का जनून भी होता है. लोग अपनी मान्यता मतलब धर्म से इतने एकरूप हो जाते है की अगर कोई उनसे विरूद्ध बोले या कुछ भी करे तो गुस्से हो जाते है. यहा तक की दुसरो को मारने के लिए तैयार हो जाते है. कभी कभी तो उसे धर्म के सिध्धांत पता भी न हो. उसने उनके ,मुताबिक साधना की भी न हो फिर भी एक दुसरे के साथ लड़ते है. हिंसा पर उतर आते है.

धर्म के नाम पर जितना रक्त बहा है उतना रक्त दुसरे किसीभी कारण से नही बहा है. हा धर्म का रक्षण भी करना चाहिए क्योकि ये वह सिध्धांत है, जिन पर हमारा जीवन का ध्येय टिका है. ये वह पध्धति है जिन पर हमे आस्था है. आस्था फिर से लगने में कई वर्षो लग जाते है.

दूसरी बात अस्तित्व की भी है. धर्म के साथ एक समुदाय जुड़ा हुवा है. उसी समुदाय के साथ संस्कृतिभी जुडी होती है. दुसरे धर्म और संस्कृति का समुदाय उसे स्वीकारता नही है या वह गुलाम बनके रह जाते है. इसलिए धर्म का रक्षण सही है.

लेकिन अध्यात्मिकता उनसे भी आगे है क्योकि धर्म का बाहर से रक्षण करना इतना पर्याप्त नही है. लेकिन लोगो की श्रध्धा मजबूत हो शके इसलिए उस राह पर चल कर भी दिखाना है. यही अध्यात्म है.

अब अध्यात्म की बात करे तो वह बहुत निराली है अध्यात्म कोई पूर्व नियोजित नही उनमे खोज समाई हुई है. उसमे केवल मान्यता नही लेकिन अनुभूति का आधार होता है.

श्रधा, आस्था ये सब धर्म के स्तंभ है. लेकिन इनसे आगे अध्यात्म है क्योकि व्यक्ति अध्यात्ममें इश्वरीय चेतना को विकसित करता है. परमात्मा का जो आनंद है उसे प्रगट करता है. यह आनंद और चेतना तो सर्व में है लेकिन उनके साथ एकाकार न होने से या केवल मन और उनकी उलझनों से घिरे रहने से उन्हें ये आनंद नही मिलता.

यहा पर अध्यात्म एक साधन के रुपमे है. जिस तरह से कोई athlete अपने शरीर को लगातार प्रयास और महेनत से कौशलयुक्त बनाता है. उसी तरह से एक अध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ा हुवा धीरे धीरे अपनी चेतना को उपर उठाता है.

जो सभी चेतना का आधार है उस ईश्वरीय चेतना तक पहोचता है एक सर्किट उप्तन्न होती है, जो दिव्यता और आनंद प्रदान करती है. नई राह दिखलाती है. मेरा ब्लॉग साधना के बारेमे नई नई बाते दर्शाता है. इतना ही नही साधना कैसे की जाये उनके लिए योग शाश्त्र और उनके सलग्न class भी शिखाये जायेगे.

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