आपको जानके ताजुब होगा की हम अपने आपको जानते ही नही. हम अपने आप में जीवन जीते ही नही. हमारे आसपास बहुत सारी घटना होती है. द्रश्य होते है लेकिन उस द्रश्य को हम देखते है, आवाज भी आती है हम उसे सुनते भी है. बहुत सारे लोग होते है उनके साथ रहते भी है !!
लेकिन वास्तवमे हम उसे देखते नही सुनते नही और उनके साथ रहते भी नही ये कैसे हो शकता है ? आप ये भी कहेगे
“देखो…यहा क्या होता है की जब हम कुछ देखते है सुनते है और किसी के साथ बर्ताव करते है तब हम उन पर ध्यान नही देते स्थिति से हम अलग हो कर अपने आप को नही देखते मतलब केवल उसे देखते नही लेकिन एक मनोराज्य में जीते है बस एक मन की बनी हुई.
मान ली जिए हमे कोई चिंता सताती है तो हम बस चितित रहते है हर पल ये तब भी जारी रहता है जब हम कुछ द्रश्य देखते हो या सुनते हो, या किसी के साथ वर्ताव करते हो.
उनका नतीजा ये निकलकर आता है की हम कोई ख़ुशी के पल को भी नही महसूस कर शकते. अपने जीवन के उस लम्हों जो फिर आने वाले नही उनको भी हम केवल मनोराज्य में ही तबदील कर देते है.
कोई व्यक्ति के साथ रहते है बात करते है बर्ताव करते है तब भी हम क्या करते है की केवल एक पूर्वग्रह से ग्रसित रहते है. उस पूर्वग्रह से निकलकर अगर हम उसे स्वतंत्र रूप से देख शकते तो हो शकता है की हमे उनकी असली खूबी जानने को मिल पाए.
अगर हम आसपास के माहोल को एक साक्षी भाव से और पूरी सजगता से देखे लेकिन उनके बारेमे कुछ भी अपना मनघडत न ऐड करे तो धीरे धीरे स्थिति की सूक्ष्मता को हम पहेचान पायेगे.
आप जहा पर बैठे है वहा पर ही बैठे रहे फिर धीरे धीरे गहरी साँस ले अब जो कुछ आप सुनते है एखते है उन्हें केवल देखे महसूस करे अपने को उनसे अलग करके मन को उनके साथ न जुड़े कोई उनके बारेमे विचार न करे भुत और भविष्य के बारेमे भी न सोचे.
कोई समस्या, मेरा क्या होगा ? अब में क्या करुगा ? कोई जीवन की प्लानिग !! ऑफिस या कार्यस्थल में जो कुछ हो रहा है उनके बारेमे !! किसीने भमे कुछ भला बुरा कहा हो तो उस व्यक्ति के बारेमे कुछ भी न सोचे
बस अपने आपको शांत करदे !! बस उनसे अलग करे जो देख रहे सुन रहे है या वर्तमान में जो घटित हो रहा है उनके साथ पूरी सजगता से वर्ताव करे. मतलब जीवन के उस पल को जिए लेकिन उनका मतलब ये नही की अपने आप को भूल जाये.
हमे अपने स्वरूप में रहकर जगत को देखना है. जगत भले हो लेकिन हम उनसे न जुड़े ये वेदांत के कुछ सिध्धांतो की तरह है हालाकि वेदांत उनसे ज्यादा गहरा है.
इस प्रकार के ध्यान का आप हररोज सुबह पर अभ्यास करे.. इतना ही नही आप उसे अपने कार्यस्थल में कही भी कर शकते है.
जब भी आप ऐसा फिल करने लगे की अब में इस घटना से बहुत ही उलज रहा हु, तब तुरंत ये करने लगे. लेकिन उस घटना को बहुत आगे मत चलने दे मनके भीतर !! मतलब मन को अगर बेलगाम कर दिया फिर तो वह आपके उपर हावी हो जायेगा.
आप बहुत ही सुंदर जगत में हो, और आप स्वयम भी दिव्य हो, जो पूरा अस्तित्व है, वह आप के साथ है. आप को बहुत कुछ दिया है जो आपके पास है उन्हें पुरे gratitude के भाव से ग्रहण करे.
सांसो को सहजता से चलने दे लेकिन उनके साथ बलजबरी भी न करे और उसे ऐसे भी बिना जाने न ले !!