कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन-karmanye vadhikaraste shlok

मित्रो अध्यात्म बहुत गहन है. हमारा जीवन उनसे जुड़ा हुवा है. हमारे प्रत्येक कदम सची दिशामें विकास की और हो, वही अध्यात्म है. अध्यात्म को व्यवहार में उतरना ही कर्म योग है. हम यहा पर योग, ज्ञान, सफलता के नये नये विषय लाते रहते है.

ये युवान के लिए भी इतना उपयोगी है और aged के लिए भी. अगर आप इनसे जुड़े रहे तो उनका लाभ आपकोभी मिलेगा. जो भी हो आज हमारा विषय उन शास्त्र के श्लोक पर है जो हमे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है. लेकिन बार बार जो फल की इच्छा करते है उन पर नही.

भगवद गीता का ये श्लोक अध्याय २ का ४७ वा श्लोक है. जब अर्जुन रणभूमि पर अपने सगे सम्बन्धी को देखकर, युद्ध छोड़ देना चाहते है, तब भगवान उसे गीता का उपदेश देते है. इसमें भी भगवद गीता का ये श्लोक तो सम्पूर्ण गीता का सार समान है.

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उनमे ऐसे राज छिपे है, जो हमे जरुर आगे बढायेगे. प्रथम इस श्लोक का अनुवाद समजते है. बादमे उसमे कौन कौन से कर्म के राज छिपे है, वह दर्शाते है. अगर आप उसे जान लोगे तो आपको दूसरा कुछ समजने की जरूरत ही नही पड़ेगी. सफलता आपके पीछे दोड़ेगी. इतना ही नही जीवन के हर क्षेत्र में जित आप की होगी.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन-work is worship quotes

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

अर्थ:- तेरा कर्म करने में अधिकार है इनके फलो में नही. तू कर्म के फल प्रति असक्त न हो या कर्म न करने के प्रति प्रेरित न हो.

पढ़े :-Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 37-भीतर के संस्कारो सहित बुरे कर्मो को कैसे दूर करे

प्रथम द्रष्टि में तो ये इतना ही समज आ शकेगा की यहा पर केवल इतना कहा गया है की कर्म करते रहो लेकिन फल के बारेमे न सोचो लेकिन यहा पर इनसे ज्यादा बहुत कुछ समजाय गया है. निचे दिए गये point का आप अभ्यास करेगे तो मालूम होगा की ये कर्म को सफल करने की तरकीब है इतना ही नही जीवन आनंद से व्यतीत हो उनके बारेमेभी समजाया गया है.

कर्म के प्रति उत्साह घटाती है -less enthusiasm

अगर कोई भी व्यक्ति बार बार कर्म के फल के बारेमे ही सोचता रहे तो क्या होगा ? उनके द्वारा किये गये कर्मो में उनका पूरा ध्यान नही रह पायेगा. उसे कर्म में ही interest नही रहेगा. वह बार बार यही सोचता रहेगा की मुजे फल की प्राप्ति कैसे होगी. यह कुछ इस तरह का है जैसे कोई राही लंबे रास्ते पर निकला हो और चलते चलते बिच बिच में पीछे मुड मुड कर देखता रहे तो क्या होगा ?

रास्ता लम्बा हो जायेगा. एक एक कदम उनके लिए बहुत ही मुश्किल हो जायेगा. उसे चलने में कोई interest नही रहेगा लेकिन वह यही सोचता रहेगा की यह सफर कब खत्म होगा. यहा पर परमात्मा हमे शिखाते है की हमे फल के बारेमे सोचना ही नही है हमे तो बस आगे ही बढ़ते रहना है. कर्म में ही आनंद का अनुभव करना है कर्म ही हमे प्रसन्नता से करना है. बस एक आनद से करते जाना है. धीरे धीरे आगे बढ़ते जायेगे

तुलनात्मक अभ्यास शुरू कराती है.Starting comparison

कोई व्यक्ति अगर केवल कर्म के फल का ही चिन्तन करता रहे तो, उसे बार बार में कहा तक पहोचा ये जानने में रूचि रहती है. आगे ? वह दुसरे व्यक्ति के साथ अपनी तुलना करता रहेगा. अगर दुसरे व्यक्ति को इतने प्रयास से सफलता मिल गई हो, तो वह तुरंत ही ऐसा सोचने लगेगा की, मुजे अभी तक क्यों कुछ नही मिला ?

ऐसी सोच ही उसे तुरत निराश कर देती है. वह बस एक और बैठ जाता है. मतलब की कर्म करना ही छोड़ देता है. क्योकि उसे ऐसा लगने लगता है की मुजे सफलता मिलने वाली ही नही.इनके बजाय अगर केवल कर्म ही करता रहे तो वह एक दिन अवश्य सफल होगा he will certainly success one day.

कभी कभी गलत मार्ग की और ले जाती है- Choosing short cuts that are sometimes not ethical

फल की इच्छा हमे सकुचित बनाती है. जल्द से परिणाम मिल जाये ऐसा सोचने को प्रेरित करती है. कर्म में दाव पेच करने की सोच उभर आती है. टेढ़े मेढ़े मार्ग से सफलता हासिल करने की इच्छा मनमे होने लगती है. जिससे कर्म की कुशलता ही चली जाती है. भगवान कहते है की अगर कोई इस तरह से धोखा बाजी करता है तो वह लंबे समय में सफल नही हो पायेगा.

He will not success in future bhagavad geeta shlok. इस संकुचितता उनकी संकल्प शकती पर effect करती है. वह धीरे धीरे अपनी आत्म शक्ति और self confidence से वंछित होता जाता है. कुल मिलाके उनके व्यक्तिव और कार्यशैली पर उनका प्रभाव पड़ता है जो अंतमे पराजय में बदल जाता है

कर्म का आनद नही मिलता – We don’t feel pleasure while doing work

यह एक बड़ी ही रहस्यमई बात है की कर्म करते करते ही हमे आनद मिलता है. जब कोई कर्म करने में एकाकार हो जाता है तब उसे समय का ध्यान भी नही रहता वह कहा है उनका भी भान नही रहता वही एक समाधि की स्थिती है. यह स्थिती अगर सहज हो जाये तो व्यक्ति को हर कार्यमें भक्ति और योग हो जाता है.

कर्म बिज का नाश होता है- principle of karma yoga

वास्तवमे ये श्लोक बहुत गहनभी है उनमे छिपा है एक गहन रहस्य !! कर्म का सिध्धांत इस तरह का है अगर आप कर्म करेगे और उनके प्रति फल की इच्छा बहुत प्रभावी रूपसे रखेगे, तो उस कर्म कर्माशय के रुपमे आपके अचेतन मन में स्टोर हो जायेगे और फिर से वही कर्म क्रियमाण हो कर आपके सामने अलग अलग स्थितिया ले कर सामने आयेगे.

अगर ऐसा चलता रहा तो कभी भी कर्म का ये चक्र छुट नही पायेगा. इसलिए मुक्ति की जो सम्भावना है वह खत्म हो जाएगी. क्योकि कोई भी इन्शान कर्म किये बिना तो रह नही पायेगा. कर्म करेगा और उनके संस्कार जमा होगे उसे भोगने के लिए फिर से जन्म होगा. इस तरह से चलता रहेगा.

यहाँ पर भगवान बिच वाला मार्ग निकालते है उनके अनुसार अगर कोई व्यक्ति कर्म करे लेकिन उनमे आसक्त न हो और सहज भाव से केवल अनासक्त रहकर कर्म करे तो उनका जो कर्म का बिज है वह स्टोर नही होगा. इसलिए वह कर्म फल से मुक्त रहेगा.

कहेने का मतलब यह भी है की अगर कोई इस तरह से कर्म करेगा तो जो भी कर्म होगे वह दुसरे के हितमे और समाज के लिए होगे.

यह बड़ा सिध्धांत इनमे गीता के इस श्लोक में छिपा हुवा है. ऐसे तो अनेक रहस्य है गीता के श्लोको में हम धीरे धीरे उसे जानेगे.

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इन सब बातो को ध्यान में रखते हुवे फल की इच्छा करे बिना कर्म करने का जो उपदेश दिया है वह बहुत ही important है

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