अध्यात्म का जीवन में उपयोग-Spiritual Power In Life

spiritual power in life

मित्रो, हमारा जीवन अनेक रहस्यों से भरा हुवा है. सामान्य स्थिति में हम इतना ही जानते है जितना हमे बताया जाता है. जब किसी बच्चे का जन्म होता है तब से उसे शिखाया जाता है. उनकी शिखने की यात्रा तब से शुरू होती है. तब से लेकर जीवन के अंतिम तबक्के तक चलती है.

दूसरी स्थिति है हमारी सोच जो हमारे अनुभव से विकसित होती है. हम जो कुछ भी देखते है, सुनते है, पढ़ते है उनके आधार पर हमारे भीतर इच्छाऐ प्रगट होती है और हम सोचते है. हमारी सोच, हमारा नजरिया हमारे जीवन की दिशा तय करता है. ये सब सामान्य स्थिति की बात हमने की.

लेकिन यहा पर आप जो समजेगे वह असामान्य स्थिति है. आपके भीतर जो रहस्य छिपा है उसे उजागर करने से आप स्वयम एक ज्ञान बन जाते है. मतलब की आपके भीतर पहले से ही है वही प्रगट होता है. प्रत्येक कोष, प्रत्येक जिव, प्रत्येक मनुष्य एक पूर्ण तत्वका ही एक अंश है. वही हमारी चेतना है. एक समज जो हमे हर हालमे मार्गदर्शन देती रहे आनंद देती रहे.

समान्य स्थिति का वर्णन हमने किया यहा पर यह चेतना सुषुप्त रहती है. लेकिन हम यहा उनके बारेमे लिखने वाले है. इतना ही नही शिखाने वाले भी है. In short इसी ज्ञान को उजागर करके, जीवन में निरतिशय आनंद का अनुभव करना, सफलता जीवन ध्येय को प्राप्त करना हमारा मुख्य आशय है.

ये पूरा ब्लॉग एक कोर्ष की तरह है. जिसके पठन से एक दिशा मिल शकती है उनकी ओर जाने की जो दिव्य है और पूर्ण है. हम केवल माहिती नही चाहते लेकिन माहिती के साथ साथ उनका अहेसासभी चाहते है इसलिए साधनाभी जरूरी है. इनसे हमे जो ज्ञान मिलेगा वह केवल शाब्दिक नही है.

लेकिन हम स्वयम अपने आप में सक्षम हो जायेगे. मतलब की अध्यात्म स्वतंत्र करता है स्वयम के आनंद के बारेमे..तो हमारी यात्रा शुरू करते है. यहा मुजे जो मिला इस राह से उसे ही बाटने का प्रयास कर रहा हु.

अध्यात्म और धार्मिकतामें अंतर

Spiritual Power का मतलब है अध्यात्म शकती. यहा पर एक difference है उनके बारेमे पहले बतादू की धार्मिकता मतलब एक मार्ग की तरफ है. उसमे एक धर्म का मार्ग होता है. किस तरह से जीवन जीना चाहिए यह बात यहा पर समजाइ जाती है.

इसमें सारे नियम है जीवन की पध्धति है. पहेरवेश, मन्दिर, भगवान की अलग अलग मूर्ति इत्यादि. ये एक अलग मार्ग है जो पुरे समुदाय को अलग करते है. अध्यात्म उनसे जरा उपर की पध्धति है.

इसमें साधक अपने में इश्वर की खोज करता है. इश्वर का अनुभव करना, जीवन मुक्ति जैसे गहन शव्द यहा पर आते है. इन शोर्ट यहा पर साधक साधना करके स्वयम में यह शकती का अवतरण करता है. उसमे ये शकती पहले से थी लेकिन वह प्रगट नही हुई थी या अनुभव में नही आई थी उसे अनुभव में लाता है.

अध्यात्म का सिध्धांत

विश्व में जो चेतना है जिसे हम ब्रह्म कहते है भगवान कहते है वही चेतना या शक्ति हमारे भीतर है यह अध्यात्म का प्रथम सिध्धांत है जो हमें यहा पर समजना है. यु कहो हमारा पहला सिध्धांत है. आधूनिक विज्ञानिको ने भी यह बात साबित कर दी है की जगत एक चेतना का ही भाग है.

पूरा ब्रहमांड बड़ा विशाल है. उसमे सूर्य, तारे, नक्षत्र, ग्रहों और हमारी पृथ्वी सब कुछ आता है. ये हुई प्रारंभिक बात. अब हमारे लिए जो काम की चीज है वह है यह शक्ति, चेतना, दिव्यता, इश्वरीय शकती. इस शक्ति को हम बार बार चेतना का बहाव कह कर संबोधन करेगे.

यही शकती हमारी तकलीफों का इलाज है क्योकि पहले हम अद्रेत थे मतलब की उनसे जुड़े हुवे थे. इनसे जुदा नही थे हमे हमारा अलग होने का अनुभव नही होता था.
लेकिन अनेक जन्मो के संस्कारो ने जमावट ऐसी की की हम हमारा ही स्वरूप भूल कर केवल एक इस तन और मन के विचारो अनुसार बन गये.

मन में तनाव आया तो हम सोचने लगे की ये हममे आया है. चिंता प्रगटी तो हम सोचने लगे की हममे है. इस तरह से राग, द्रेश, काम, क्रोध, मोह आदि जो कोई भी है वह हमारे मन के है हमारे अपने नही इस बात को हमे बार बार याद रखना है यही इस कोचिंग का मतलब है .

इसमें कोई नई बात नही है क्योकि जब यह ब्रह्माण्ड नही था तब ये सब एक केन्द्रित में था ऐसा तो विज्ञान भी कहता है. बिग बेंग की थियरी अनुसार और हमारे धर्म के आधार पर भी भगवान कहते है की यह सब अव्यक्त था मतलब की चेतना का भाग था भगवद गीता में भी भगवान ने विश्वरूप दर्शन दिखाया था इनमे भी यही बात वर्णित की गई थी.

जैसे सागर में पानी है वैसे. हमारी सभी और आकाश है इस तरह से. आकाश यहा पर भी है और वहा पर भी. यह पृथ्वी पर भी है और पृथ्वी के बहार भी.

मान ली जिए अगर एक बड़ा सूर्य हमारी पृथ्वी की अत्यंत नजिक आ गया तो फिरसे ये सब लावा और बादमे वायु बन जायेगा. क्योकि यह सारे अणु धीरे धीरे फैलते जायेगे और पहले प्रवाही और बादमे वायु बन जायेगे.
या ब्लेक होल आ गया तो सारे कोष सिकुड़ते सिकुड़ते एक गाढ़ अंधकार बन जायेगा. इस तरह से फेलाव और सिकुड़ना ये दोनों तो होता रहता है इस ब्रह्माण्ड में.

जैसे व्यक्ति में जन्म और मृत्यु होता है इस तरह से. ये सारी घटना हमारे अस्तित्व में भी लागु होती है.

इसी चेतना के बहाव को या इश्वरीय भावको अनुभवमें लाना है

इसलिए तो हम यहाँ ये कहते है की हमे विज्ञानं की कोई ट्यूशन नही खोली. यहा एक ही बात है की हमारे शरीर में हमारे अस्तित्व में जो हम है ऐसा जो अनुभव होता है वही हमारा सेल्फ अवेरनेश है हमारी चेतना का होना है.

क्योकि किसी भी निर्जीव को अपने होने का अहेसास नही होता हमे कोई कहे तो दुःख होता है, हम प्रसन्नता का अनुभव करते है, हमे संकोच होता है. ये सब हमारे होने का प्रमाण है.

अगर हमें पूर्णता का अनुभव थोडा बहुत होता रहता तो तो कोई मुस्केली न थी लेकिन यहा पर यह बहाव रुक गया है. उनका जो मार्ग है जहा अलग अलग चक्र है वह भी हमे समजना है ये सब एक साथ ही है.

मतलब की मन से शुद्ध हो कर उनमे लींन होना या चक्र की जाग्रति ये दोनों एक है. हा अगर केवल चक्र पर ध्यान दिया जाये तो कोई कोई सिध्धि या मिलती है लेकिन यहा पर हमे उनसे आगे अनुभव की और जाना है क्योकि ये अलग तरीके की साधना है.

हमे जो अनुभव होता है वह मन और उनके संस्कारो में से पसार होता है इसलिए उनके मुताबिक अनुभव होता है. यहा पर हमे यह अंतराय धीरे धीरे कम करना है जिससे हमे चेतना का बहाव मिल शके और हमारा जीवन चिंता मुक्त, हर्षित, सफल, नवपल्लित, उत्साही, सुखी अनादित हो शके जो भी कहो एक प्रकार से दिव्य लाभ मिल शके जीवन मधुर लागे, जीने योग्य लागे.

युवानो का यौवन निखर शके. क्योकि बार बार अगर कोई विषयों का ही चिन्तन करता रहे तो बहु स्वभाविक है की वीर्य शकती का काफी व्यय होता रहे जिससे जीवन निस्तेज हो जाये. यहा पर सब कुछ त्याग देना ऐसा नही परन्तु एक समज विकसित करनी है.

जो शक्ति है वह चली जाये. आलस और एक प्रकार का मस्तिष्क में मंद हो जाये. क्योकि निम्न चक्र में ही चेतना का बहाव रहेगा उपर तक नही आगे बढ़ेगा यह चक्र पुरे खुलेगे नही

ये कोचिग कैसे है ?

हमे यह बात सीखनी है केवल पढनी नही है क्योकि ये ज्ञान अनुभवमें लाना है. यहा पर जो सहज साधना दी जाएगी यह आपको करनी है. प्राणायाम, ध्यान आत्मज्ञान की समज इत्यादि से धीरे धीरे एक प्रबुध्धता सिद्ध होती जाएगी.

बार बार विषय को पढने से और इनके अनुसार ध्यान आदि करने से एक सर्किट डेवलोप होती जाएगी जो हमे सफलता और आनंद देती रहेगी.

जीवन जीने योग्य लगेगा, प्रसन्नता का अनुभव होता है, लम्बे समय तक काम करने के बाद भी साधक थकता नही है. प्रेम की समज आ जाये तो स्त्री के साथ संबंध ठीक हो जायेगे. विषयों तब तक नुकशान कारक है जब तक हम उनको अपने मुताबिक न चला पाए.

हमारी स्थिती आज यह है की हम मन के नियन्त्रण में है मन हमारे नियन्त्रण में नही इसलिए हम जिव भाव में है. अगर ये चक्र जागृत हो जाये अथवा मन उच्च स्थिती प्राप्त करले तो जीवन रंगीन बन जायेगा.

इस तरह से इनसे जुड़े यह सब आपके लिए बड़ा ही अद्भुत है और जीवन उपयोगी है


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