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सुनता हू में सब कुछ
सुनता हू में सब कुछ
लेकिन करता नहीं कुछ
कहेता हूं में सभी को
तुमें यूहीं करना
लेकिन करता नहीं कुछ
पुस्तक लिखी है मैने
जीवन जीने के तरीके
लेकिन जीता नहीं उस तरीके
अब तो थक चुका हूं
में लोगो को कहते कहते
लेकिन फर्क पड़ता नहीं कुछ हम दोनों में जय श्री कृष्णा 🙏🙏
पूछे मैया कृष्ण काना को
पूछे मैया कृष्ण काना को
आज तूने क्या खायो ?
मु दिखा दे तू अपना
तूने फिर से मिट्टी खायों
ना ना मैया कुछ नहीं खायो
सच्ची बात बतायो
सब जो खाता वे में ही खाता
अगम बात बतायो
मा ने काना को पकड़कर जबरन मु खुलवायो
पूरे विश्व को मुख्मे देखि शुद्ध बुद्ध गावायो
सकल लोक के स्वामी कृष्ण है
अजब माया रचायो
परमात्मा पुरे विश्व में व्याप्त है वह भगवानने गीतामें भी कहा है
मिला मुझे उसिसे सब कुछ
मिला मुझे उसिसे सब कुछ
अब नहीं कोई गीले सिकवे
दिया उसने मुज़को
अपनी असलियत से ज्यादा
सोचा भी नहीं था
क्या वे इतना निकट होगा,
अब क्या कहूं में उनसे
उनसे क्या हिचकिचाना
पूरी करदे एक अरज मेरी
हो स्थिति मेरीजहा आनंद सहज हो
अगर में सो जाऊं तो मुझे तू जगा देना
अगर में गिर जाऊं
तो मुझे तू उठा लेना, करना भला उसिका
जो मेरे हो अपने या हो पराए
एक और कभी दूर न होना सुंदर साम मुझसे नीलेश
करना हमे कुछ ऐसा काम
करना हमे कुछ ऐसा काम
जो हमको बुलंद कर सके
बनना है देश की शान
जो विजय ध्वज फेला शके
दिशा भले हो अलग
विज्ञान, खगोल के आयुर्वेद,
योग, ज्ञान हो विज्ञान
हमे कुछ कर दिखाना है
नहीं हारेगे नहीं थाकेगे
चलते रहेंगे हम हर दम,
प्रभु ने दिया है ये जीवन
उसे उजागर करके रख देंगे
अगर न बने हमसे कुछ
दूसरो की मदद करदेगे
करना हमें कुछ एसा काम
जो हमको बुलंद कर सके
नीलेश
अवधपति राम वनमें आई
अवधपती राम वनमे आइ
ऋषिवर समूह लगाई,
विश्वाधिपती श्री राम,
कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम
सीता संग वलकल वस्त्र धराई
साथ लेके लखनभाई
पनघट पनघट बोल पपिहा,
मोरमोरनी नाच नचाई
कलकल करती नदिया सारी,
प्रभु मिलानकों धाई
आए है प्रभु सबको तारन वनगमन को आइ
अगर भक्त हो सच्ची घरबैठे प्रभु आई
राम वन में आई…
राधाकृष्ण आये मनमे
राधा कृष्ण आए मन में
फूल खिले उज़डे चमनमें
प्रेमभक्ति में ऐसी शक्ति
प्रभु को लाने की है शक्ति
प्रथम प्रेम जो इनसे होवे
प्रेम वासना को भेद समझ में आए
कारण प्रभु प्रेम है निर्मल
आत्मज्ञान है वहा उज्वल
आज मुजे अहंकार आयो १
आज मुझे अह्मभाव आयो,
में मन ही मन बहू फुलायो,
बीच बीचमें में में में करतो,
आप से तुम पर आयो छोटी छोटी बातों पर खिजतो,
सबको बहू बड़प्पन दिखायो,
में सच्चा तुम झूठा, ऐसा बार बार दहोरायो,
किसीकी में बात न सुनता, अपनी मन मानी में करता,
अब ऐसा हो गया है,
सब मुझ से दूर हो गए है,
कोई मुझसे बात न करता, कोई मेरी बात न सुनता,
प्रभु पास जाऊ तो भी मन ही मन सरमायो
अह्मभाव है सच्चा वेरी आज मुझे समजायो -नीलेश
राधाकृष्ण आये मनमे २
राधा कृष्ण आए मन में,
फूल खिले उज़डे चमनमे,
प्रेमभक्ति में ऐसी शक्ति, प्रभु को लाने की है शक्ति,
प्रथम प्रेम जो इनसे होवे,
प्रेम वासना को भेद समझ में आए
कारण प्रभु प्रेम है निर्मल आत्मज्ञान है वहा उज्वल
-निलेश
अवधपति राम वनमें आई ३
अवधपती राम वनमे आइ,
ऋषिवर समूह लगाई,
विश्वाधिपती श्री राम, कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम,
सीता संग वलकल वस्त्र धराई,
साथ लेके लखनभाई, पनघट पनघट बोल पपिहा,
मोरमोरनी नाच नचाई, कलकल करती नदिया सारी,
प्रभु मिलानकों धाई,
आए है प्रभु सबको तारने वनगमन को आये,
अगर भक्ति हो सच्ची घरबैठे प्रभु आई..
राम वन में आई
-निलेश
पहेचानकर असलियत अपनी ४
पहेचानकर असलियत अपनी,
जीने का मज़ा कुछ और है,
अगर छूटना है अखिरमे,तो खुशी क्या गम है,
करते रहो तुम काम अपने,बिना कुछ गमगीन होके,
अगर नियत अच्छी होगी तुम्हारी,
मिलेगा तुमें सबकुछ भारी,
-निलेश
ये सान सोकत बाग बगीचे ५
ये सान सोकत बाग बगीचे,
ये सारा जग तेरे पास है प्यारे,
नहीं रहेगा तू भी जाएगा,अखरीमे ये सब छोड़के प्यारे,
भूल न जा असलियत तेरी,
खो जाएगा इस भवंडर में प्यारे,
बदलते रिश्ते बदलती मौसम,आती जाती ये वस्तु ए प्यारे,
अगर सच न लगे तो देख बीते कल को,
कौन रहा है यहां कायम प्यारे,
जीले जिंदगी अपनी आनंद से,
सध ले तू आत्मराम प्यारे,
चिंता छोड़ चिंतन कर, करले बड़े काम प्यार,
ये सान सोकत बाग बगीचेे…
#निलेश
मन है वहा समय लागे ६
मन है वहा समय लागे,
मन है वहा जगत दिखे,
बहुत है लेकिन मन नहीं तो कुछ नहीं,
मन सधा तो सब कुछ सधा, मन का गुलाम कब तक बनना,
मनको साक्षी भाव देखी, मन शांत हो जाई,
मन जैसा कहे वैसा ही करते रहने से बिंनजरुरी कुटेवो घर कर जाएगी इसलिए मन की सारी वृतिओ को ध्यानमें देखते रहना चाहिए धीरे धीरे वह सध जाएगी फिर तो आनंद ही आनंद है
-निलेश
शिव शंभू हो करुणा के दाता ७
शिव शभू हो करुणा के दाता,
आप ही मेरे भाग्य विधाता,
शिर जटा, गले सर्प नंदी कि सवारी,
हाजिर होते भोले भंडारी,
प्रथम योगी भोलेनाथ कहावे,
उन्हें जपे वह सिद्धि पाए,
-निलेश
प्रभु मेरा मन चंचल होक डोले ८
प्रभु मेरा मन चंचल हो के डोले,
इधर उधर की बोले, लाख स्मजाऊ फिर भी न माने,
हर पल कुछ नया नया मागे,
समझ न आवे क्या करू उनका, जितना देता उतना मागे,
बताया किसीने उपाय मनका, यह मन मरकट होवे,
उसे बार बार कुछ जोवे,अभ्यास वैराग्य से स्थिर होवे,
लगादे उसको हरी नाम में, फिर देख आनंद में कैसे डोले,
प्रभु मेरा मन चंचल हो के डोले जय हो श्री कृष्ण की
-निलेश 🙏🙏
प्रभु रात है बड़ी न्यारी ९
प्रभु रात है बड़ी न्यारी,
तुझ संग जोड़ती है प्यारी,
वरना हम उलझे रहते,कितने भी थके होते,
यही रात में भी दो है विभाग,
एक है योगी का और दूजी है भोगी का,
जो खुदको मनसे दूर रखे,
तुझ संग जोड़ रखे,
धीरे धीरे सोचते सोचते सिथिल कर दे सारी काय,
अंत में मन में नहीं हूं ऐसा सोच के सो जाए,
उसे निदमे मिलता अपार आनंद,
सारी थकान दूर हो जाए
-निलेश
सहज भान कहा हो रहा है १०
सहज भान कहा हो रहा है,
चित में हो रहा है या मनमे ?,
केवल मन में है तो भुला वह,
चित में हो तो भुला मन,
मन को चित की वृत्ति माने,
चित को आत्माका वाश माने,
चित से निकला तो परब्रह्म के पास जाने,
गूढ़ है ये ज्ञान,जो जाने उसे माने खास,
यहां पर भी दो दो भेद शाब्दिक और अनुभव जनित,
शाब्दिक तो सबके पास,अनुभव कोई एक के पास,
निलेश कहे जो जाने ये,
हरी के पास जाए वे
-नीलेश
सुन कर में ये बात सारी ११
सून कर में ये बाते सारी,मनही मन सोचुगा,
ये पूरे संसार में प्यारे शांति कहा पर पाउगा,
कभी मिलती खुशी तो कभी मिलता गम,
इसमें फसता रहा हूं में हरदम,
कोई कहे ये करो, कोई कहे वे,
कोई कहे इधर चलो कोई कहे उधर,
सब अपनी बात बताते,राय अपनी सुनाते,
लेकिन आखिर एक इन्सान मिला,
जिससे सच्चा ज्ञान मिला,
भीतर का ये रास्ता तुझे सही पहोचाएगा,
भाग मत हार मत, चलता रहे हरदम,
शांति और आनंद दोनों मिला यहा भरपूर,
-निलेश
हरी मेरे द्वार आई १२
हरी मेरे द्वार आई, उसे क्या खिलाउगा,
सचराचर विश्व के स्वामी, उसे कहा बिठाउगा,
मेरे पास जो है सब उसका, उसका उसिको कैसे दे पाऊगा,
हरी मेरे द्वार आई उसे क्या खिलाऊगा,हरी को जो चाहिए मुझसे,
वह क्या दे पाउगा, अहंकार, विपरीत वृत्तीय सारी,
हरी के ये मनभावन है, बैठने को चित चोख्खा,
वहा उसे बिठाना है, हा एक बात है यहां पर,
प्रभु ने बताया है गीतामे, मन अगर हो प्रभूमे,
शुद्ध हो चित हो हमारा रिजेगे प्रभु
-निलेश
प्रभु तू है भक्तो के तारणहार १३
प्रभु तू है भक्तो के तारणहार,
विदुर की भाजी खाई, त्याग दुर्योधन मिस्टान,
नर्सिन्ह बनके प्रहलाद को बचाए,
द्रोपदी की राखी लाज,
शबरी के झूठे बैर खाए, पहोचाया उसे निजधाम,
कृपा करो है भको के स्वामी, कृपा सिंधु घनश्याम,
हमे तो बस रखनी है धीरज,
शबरी ने रखा आंगन चोख्खा,
हमे रखना है चित चोक्खा,
तन मन की शुद्धि करके प्रभु को बुलाना है,
न जाने कब अजाए राम,
-निलेश
मन मिले तो मोती मिले १४
मन मिले तो मोती मिले,
मन न मिले तो कुछ नाहीं,
प्रभु संग प्रीत जगे,तो आनंद मिले,
सारे जगसे प्रीति होई,सो राम जप प्यारे,
कृष्ण को बनाले हमारे
-निलेश
यहा है सब खालीपन १५
यहां है सब खालीपन,दिखते है सब उजलापन,
लेकिन भीतर से सब खालीपन, बंधती है इमारतें बड़ी,
शान सोकत और बड़प्पन, लेकिन हैये में सब सूनापन,
बंधते है रिश्ते यहा, पर मिलते है दो यार यहां पर,
मुखौटा लगाकर मुंह पर,
अरे अजीब है ये दुनिया,किसी में नहीं अपनापन,
दिखते है सब उजलापन,लेकिन भीतर से खालीपन,
छोड़ना मत तू हाथ उसिका,आखरी वक्तमे साथ उसिका,
इतना भी मत उलझे इस जगमे,यहां भीतर से सब खालीपन
-निलेश
मेरा मन हरी गुण गाये १६
मेरा मन हरी गुण गाए, कभी राम तो कभी श्याम,
एक तेरे अनेकों नाम, इस जगममें तू है अविनाशी,
सब जग का है तू वासी, तू ही साकार तू ही निराकार,
तू है आनंद का आधार, मेरा मन हरी गुण गाई,
चित चंचल मन उछलग,
भक्ति से होवे वे निर्मल,
निर्मल मन एक दर्पन होई,
अनुभव ब्रह्म का वहा होई,
अंत में तू और में एक हो जाइ,
अतिम ध्येय सिद्घ हो जाइ,
कहे नीलेश ये राज भक्ति का,
जो जाने वह पार उतर जाएं,
आनंद हो मंगल हो
वाद विवाद से अच्छा सवाद १७
वाद विवाद से अच्छा संवाद,
ये सारी समस्या का हल है,
जब कोई दो ज़गड़ते है,
तो बात के विषय से ज्यादा उनका अहंकार है,
अगर जो एक उसे सुन ले,
तो हल अपने आप है
-निलेश