ध्यान क्या है ?- कैसे करना है ?- Meditation in Hindi

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मित्रो, आज हम ध्यान meditation के बारेमे जानेगे. आमतोर पर तो meditation बहुत ही प्रचलित है. कोई भी ऐसी व्यक्ति नही जो ध्यान को थोडा बहुतभी न जानता हो. लेकिन यहा हम जो बात करते है वह meditation के भीतर की ओर जाने की है. पूरा articles पढिये तो आपको ध्यान के बारेमे सब कुछ जानने को मिल जायेगा क्योकि यह अर्थ नही जाना तो meditation का benefits of meditation फायदा थोडा कम हो शकता है.

में इनके लिए एक वीडियोभी बनाने वाला हु जो online class में आपको मिल जायेगा. तो चलो ध्यान की ये यात्रा शुरू करते है. सबसे पहले हम ये जानने का प्रयास करेगे की meditation ध्यान की सामान्य आव्यश्कता क्यों आन पड़ी फिर उनका spiritual advantage of meditation क्या है वहभी जानेगे.

ध्यान के बारेमे हमारी सोच-Understanding of meditation

सामान्य स्थिती में ध्यान meditation को Concentration के साथ जोड़ा जाता है. हमारा articles improve-concentration-and-focus भी जरुर पढ़िए. आजके समय में mind up-set विचलित होना बहुत ही स्वभाविक है. कोई भी बात हो मन तुरत ही उन पर सोचने लगता है.

या फिर चिंता, तनाव, विपरीत चिंतन में डूबा रहता है. अगर सब कुछ ठीक तरह से होते हुवे भी मन ही मन कुछ असंतोष में डूबे रहना आजकल फेशन बन गया है. उनका परिणाम यह आता है की शांति, आनंद और संतोष नामकी चिड़िया कही पर उड़ गई है.

कोई भी कार्य ठीक से होता नही और होता है तो उनसे आनंद मिलता नही. आनंद का मिलना जीवन में बेहद जरूरी है. अगर आप को कार्य में से आनंद की अनुभूति नही होगी तो जीवन ही पूरा निरश हो जायेगा क्योकि जीवन की जो ख़ुशी है वह इसी आनंद के साथ तो जुडी है ! चाहे कितना भी कमा लो लेकिन उस स्थिती में आनंद नही मिला और मन भटकता रहा तो बार बार जीवन की बागडोर अस्तव्यस्त होती रहेगी.

दूसरी बात है जो सामान्य विद्यार्थी से लेकर service men, business men, professional के लिए जरूरी है. वह है कार्य में पूरी तरह एकाग्र concentration होना. इस एकाग्रता और मन की शांति दोनों के ख्याल से meditation के बारेमे सोचने की जरूरत पड़ी.

फिर तो किसी ने योग के एक सोपान meditation को वहा से उठाया और हमारे सामने रख दिया !!. लेकिन अगर आप meditation ध्यान के अर्थ को और उनकी process को जाने बिना ध्यान को ही एकाग्रता मान लोगे तो उनका पूरा लाभ आपको नही मिलेगा.

एकाग्रता ध्यान नही है ?-Concentration is not meditation completely.

अगर हम किसी भी कार्य को बहुत ही एकाग्रता से करे तो वह कार्य बहुत ही अच्छी तरह से हो जायेगा. ये बात तो हम सब जानते है. अगर कोई भी कार्य के बारेमे हमारी सोच सभी सोच से हटके उन पर आकर रुक गई तो हमारी एकाग्रता हो गई ऐसा हम कह शकते है.

क्योकि मन की सभी वृति उन पर एक हुई. जिस तरह से सूर्य का प्रकाश लेंस में एक बिंदु में केन्द्रित करने से ज्यादा उर्जा पाई जाती है. उसी तरह यहां पर होता है. लेकिन यह ध्यान का एक चरण है. ध्यान नही. ध्यान का अर्थ है जो भी वृतिया है उनसे उपर उठकर उन्हें देखना उनमें सम्मलित नही होना.

मतलब की मन से उपर हमारा अस्तित्व self awareness है उसे ही अनुभव करना. मन को और उनकी गतिविधि को केवल साक्षी भाव से देखना. उनसे एकरूप नही होना. concentration में तो ये कोई ऐक विचार पर केन्द्रित होता है. हा, हमे यहा पर एक फायदा जरुर होता है की मन अन्य विचारो से हट जाता है.

अधूरे ज्ञान से नुकशान-Get some disadvantage due to less knowledge !

लेकिन यहा सवाल यह उठ आता है की अगर इस तरह से किया जाये तो हो शकता है की हम कोई विपरीत बात को पकड़ ले और उनमे एकाग्र हो जाये. मान ली जिए तनाव में एकाकार हो जाये !! कोई पूर्वग्रह युक्त विचार में ही जकड़ जाये. तो ये उल्टा ज्यादा हानि कारक होगा.

इन्ही के कारण केवल एकाग्रता को ही ध्यान मानते है उसे कभी कभी समस्याभी होती है. यह मर्यादा ध्यान की नही लेकिन उनका पूरा अर्थ न जानने से है. This limitation is not meditation but not to understand the correct meaning it. क्योकि यहा पर एकाग्रता किस विषय पर हो ये कोई नियम नही बनता !! जिनका मन एकाग्र होने लगता है, वह अगर कोई विपरीत विषय में एकाग्र हो जाये तो ? इसीलिए उपर उठने की और साक्षी भाव में रहने की बात को ध्यान में रखनी है.

ध्यान की सहज क्रिया जो हम करते है-
definition of yoga in Hindi

शांत जगह पर आखे बंध करके कोई भी एक विषय पर मन को स्थिर करना. वह विषय कुछ भी हो शकता है. मूर्ति हो, मन्त्र हो, या कोई कुदरती द्रश्य हो, या कोई दिव्य विचार हो. मन का स्वभाव है की वह इधर उधर भटकता रहता है.

जैसे ही वह दूर हटे की तुरंत उसे फिरसे वही बिंदु पर स्थिर करना है. धीरे धीरे एकाग्रता बढती जाएगी और ध्यान आगे बढ़ता जायेगा. इस तरह से एकाग्रता को ध्यान कहा जाता है. हालाकि एकाग्रता ध्यान का पूर्व स्टेज है फिर ध्यान लगता है. और ध्यान की अंतिम चरण समाधी है. मतलब की समाधी के लिए खास नही करना ध्यान का धीरे धीरे अभ्यास करना है.

सामान्य रूप से जो ध्यान की क्रिया है. उसी तरह से हम भी यहा पर क्रिया रखेगे. यह क्रिया केवल एक माहोल बनाएगी. माहोल बनाने से एक प्रेरणा और उत्साह बना रहता है जो ध्यान की समग्र प्रक्रिया को उत्साह और आनंद प्रदान करती रहेगी.

लेकिन यह क्रिया बंधनकरता मतलब की एक विधि बन कर नही रह जानी चाहिए. मतलब हमे पकड़े ऐसी न होनी चाहिए. क्योकि सामान्य रूपसे हम ध्यान की विधि में ही इतना उलज जाते है की फिर ध्यान तो एकओर रह जाता है, लेकिन उनकी क्रिया ही मुख्य बन जाती है.

ध्यान में हमे उतरना हे मतलब की हमारी जो चेतना है self awareness है उनमे एकाकार होना जो भी सोच उभर कर आये उन्हें केवल साक्षी भाव से देखना. साक्षी भाव मतलब की जो कोई भी सोच चलती है उनमे में सम्मलित नहीं हु. में केवल उनको देखता रहता हु. यह एक बात हुई अब दूसरी बात है धीरे धीरे उपर उठना. हमारी चेतना के अलग अलग स्तर होता है. कोई एक स्तर में एक ही प्रकार के विचार उभर कर आते है. ध्यान का अभ्यास बढ़ता जाये की धीरे धीरे हम चलते फिरते भी आनंद की स्थिती में रह शकते है.

उनके इन आनंद के अनुभव से भी आगे की यात्रा है लेकिन इसके लिए पहले हमे यहा तक पहोचना चाहिए फिर आगे की यात्रा ! अगर कोई अपने शरीर और इन्द्रिय वाले में से स्वतंत्र अनुभव करने लगे तो भी बहुत उनके आगे की यात्रा वह स्वयम ही तय कर लेगा.

शरू में साधक को सरल आसन और सरल प्राणायाम का कुछ अभ्यास करना चाहिए क्योकि यह सब ध्यान की पृष्ठ भूमि को मजबूत करते है. फिर धीरे धीरे कुछ भी न सोचके अपनी सासों पर ध्यान रखे या जो कुछ देख रहै है वह कौन देखता है उसमे लींन हो.

धीरे धीरे शरीर को भूलने के लिए जो चिन्तन है वह guided meditation के विभाग में लिखा गया है. में शरीर से पर हो रहा हु मन से पर हु आदि फिर उसी सोच को भी भूल कर पीछे की तरफ अनंत आनन्द में खोते जाइए.

Relax Relax और Relax बस एक अनंत में लीन होते जाइए कुछ न सोचे. हमारे मस्तक के उपरी हिस्से में एक अनंत आनन्द का सरोवर है. ये सरोवर अत्यंत प्रकाश और दिव्यता से भरपूर है. यही चेतना धीरे धीरे अलग अलग इन्द्रियोमे अपना प्रकाश या चेतना प्रसारती है यही चेतना मन में जाती है और मन के अलग अलग संस्कार के अनुसार सब अनुभव होते है.

ध्यान की विशेष समज
special understanding of meditation

लेकिन हमे जो यहा अनुभूति करनी है वहा ध्यान को जरा पूरी तरह जानना होगा. यहा हम जो ध्यान के बारेमे जानेगे वो ध्यान के भीतर का ज्ञान ही है. सरल है कठिन नही है. वास्तवमे हमारा ध्येय है पूर्ण करना. चाहे कैसे भी हो हमे जीवन में एक उत्साह, आनंद और प्रसन्नता का अनुभव करना है. हमारे अपने स्वरूप में एकाकार होके पूर्ण होना है. ध्यान हमे करना नही है. वह धीरे धीरे लग जाता है.

हमे एक ऐसी स्थिती का निर्माण करना है जहा ध्यान अपने आप लग जाये. जैसे हम रात को सोते है. हम नींद में रहने के प्रयास नही करते है. नीदं स्वतत्र रूप से आ जाएगी क्योकि यह हमारी एक स्थिती है. हमारा लोप हो जाये तब वह अपने आप हो जाये.

जब चित एक बिच वाली स्थिती में जहा हमे स्थूल शरीर का भान नही रहता. मतलब केवल इतना ही की हम सो जाये तब हमारा कंट्रोल हमसे ही छुट जाये. मतलब ऐसा हुवा की जब तक हमारा कंट्रोल रहेगा तब तक हम सो नही पायेगे.

Meditation हम करते नही हम तैयारी कर शकते है लेकिन meditation अपने आप हो जाता है

अगर कोई जानबुज़ कर में सो रहा हु ऐसा अनुभव करने की सोचे या प्रयास करे तो दोनों एक साथ नही होगे या तो वे सो जायेगा या जागता रहेगा !! तो हमे क्या करना है. तैयारी करनी है !! लंबे हो के लेट जाना. आखे मूंद लेना कुछ न सोचना आदि क्रिया हमे करनी है. धीरे धीरे हमे पता ही नही चलता की कब नीद आ गई.

उसी तरह से यहा भी ऐसा है. हमे बस शांत होते जाना है. यह पर मन को केन्द्रित करने को क्यों कहते है. इसलिए कहते है की मन अन्य विचारो से हट जाये फिर धीरे धीरे मन शांत हो जायेगा और अपने स्वरूप में लींन हो जायेगा. यही ध्यान है यहां पर मन अलग नही है वह भी हमारा ही तरंग है. जैसे सागर में लहर उठती है उस तरह.

मन एक पडदा है उसमे जो कुछ भी हम देखते है, सुनते है, सोचते है उनकी तरंग उत्पन्न होती है. धीरे धीरे हम जैसे उस तरंग को शांत करते जायेगे की वह अपने आप धीरे धीरे चेतना की स्थिती में चला जायेगा. हमारे भीतर एक दिव्य चेतना है जिसे हम आत्मा कहे या सेल्फ अवेरनेश कहे जो भी नाम दे बात एक ही है.

ध्यान के फायदे-Benefits of meditation

कोई उसे चैतन्य कहता है कोई उसे परमात्मा का अंश कहता है. कोई उसे होश कहता है. कोई उसे चेतना का उत्थान कहते है सब कोई जिसको जैसे अनुभव हो उस नाम से बुलाते है लेकिन बात एक ही है की वही चेतना हमारा स्वरूप है. अद्रेत है और निरतिशय आनंद रूप है उस की ओर जितना जाये उतना गुणों का विकास होगा.

समज का विकास होगा. हमारे शरीर में नई चेतना का संचार होगा. दिव्य आनद का अनुभव होगा. हमारी संकल्प शकती बढ़ जाएगी इससे वर्तमान जीवन में भी कई सारी समस्या ये दूर हो जाएगी. सामान्य दौर पर हम मन में ही रहते है. मन के विचारोमें ही हम गुथे रहते है. मन की उल्जन हमारी उल्जन समज बैठे है.

यह सब धीरे धीरे दूर होगा. एक बार कहेने से या एक बार करने से ये दूर नही होगा. ये आनंद निरंतर तबही होगा जब हमारा स्व का अनुभव धीरे धीरे मजबूत हो जाये हमे मन से पर जो चित की सत्ता है उनका अनुभव धीरे धीरे होने लगे. हमे ऐसा आभास होने लगे की जो चेतना है वह हम है और मेरे मन में ये विचार आया.

आज मेरा मन बहुत व्यग्र है.आज मेरे मनमे इर्षा उत्पन्न हुई. क्रोध आये तो क्रोध कौन कर रहा है यह सोचेगे की तुरंत क्रोध चला जायेगा. हम केवल अंधेर में रहकर मतलब हमारा अस्तित्व अलग है ऐसा सोचे बिना ही सब कुछ करते है.

इसलिए उनके अनुरूप ढल जाते है आखिर में जो उत्पात है वह हमारा ही है हम ही यही है ऐसा लगने लगता है. अब ज्यादा लम्बा नही करना अब हम ध्यान की विधि को समज ले. फिर से समज ले की यह एक प्रक्रिया है ध्यान धीरे धीरे अपने आप लग जाता है.

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